Hindi (Kshitij) Class 9 : पाठ 10 - वाख

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NCERT Solution Class 9 Hindi Kshitij पाठ 10 - वाख

NCERT Solution Class 9 Hindi Kshitij


पाठ - 10 
वाख

- कश्मीरी कवयित्री ललद्यद

प्रश्न‐अभ्यास

प्रश्न 1.
‘रस्सी’ यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है और वह कैसी है?

उत्तर 1) यहाँ रस्सी से कवयित्री का तात्पर्य स्वयं के नाशवान शरीर से है। उनके अनुसार यह शरीर सदा साथ नहीं रहता। यह कच्चे धागे की भाँति है जो कभी भी साथ छोड़ देता है।



प्रश्न 2.
कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास व्यर्थ क्यों हो रहे हैं?

उत्तर 2) कवयित्री द्वारा मुक्ति के लिए किए जाने वाले प्रयास इसलिए व्यर्थ हो रहे हैं क्योंकि वह इस संसार में रहकर सांसारिकता और मोहमाया में फँसी है। ऐसे में वह प्रभु‐भक्ति सच्चे मन से नहीं कर पा रही है। अतः उसके प्रभु से मिलने के सारे प्रयास व्यर्थ हो रहे हैं।



प्रश्न 3.
कवयित्री का ‘घर जाने की चाह’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर 3 घर जाने की चाह का तात्पर्य है ‐ इस भवसागर से मुक्ति पाकर अपने प्रभु की शरण में जाना। वह परमात्मा की शरण को ही अपना वास्तविक घर मानती है।



प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) जेब टटोली कौड़ी न पाई।
(ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, न खाकर बनेगा अहंकारी।

उत्तर 4)(क) ’जेब टटोली कौड़ी न पाई‘ के माध्यम से कवयित्री कहना चाहती है कि मनुष्य छल‐कपट, स्वार्थ, लोभ, मोह आदि में लिप्त हो सत्कर्म भूल जाता है। जीवन के अन्त में जब कुछ भी हाथ नहीं लगता है तब वह पछताता है।

ख) इस पंक्ति का भाव यह है कि यदि मनुष्य अपने जीवन में सिर्फ उपभोग करने की लालसा रखेगा, तो वह कुछ हासिल नहीं कर सकेगा और यदि सारे भोग‐उपभोग का त्याग करे तो वह अहंकारी बन जायेगा। इसलिए मनुष्य को संयम बरतते हुए सदैव मध्यम मार्ग अपनाना चाहिए।



प्रश्न 5.
बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललयद ने क्या उपाय सुझाया है?

उत्तर 5) बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए कवयित्री ने निम्नलिखित उपाय अपनाने का सुझाव दिया है-

  • मनुष्य को सांसारिक विषयों में अधिक लिप्त न रहना चाहिए और न इनसे विमुख होना चाहिए। उसे बीच का रास्ता अपनाकर संयमपूर्ण जीवन जीना चाहिए।
  • मनुष्य को सभी प्राणियों को समान दृष्टि या समान भाव से देखना चाहिए।
  • प्रभु की सच्ची भक्ति करनी चाहिए।


प्रश्न 6.
ईश्वर प्राप्ति के लिए बहुत से साधक हठयोग जैसी कठिन साधना भी करते हैं, लेकिन उससे भी लक्ष्य प्राप्ति नहीं होती। यह भाव किन पंक्तियों में व्यक्त हुआ है?

उत्तर 6) यह भाव निम्नलिखित पंक्तियों में व्यक्त हुआ है -

आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।

सुषुम‐सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह।

जेब टटोली, कौड़ी न पाई।

मांझी को दूँ, क्या उतराई ?



प्रश्न 7.
‘ज्ञानी’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?

उत्तर 7) ज्ञानी से कवयित्री का अभिप्राय है जिसने आत्मा का परमात्मा से संबंध को जान लिया हो। अर्थात सच्चा ज्ञानी वह है जो अपनी आत्मा के बारे में जानता है। क्योंकि अपनी आत्मा को जानने के बाद ही परमात्मा का बोध हो सकता है। वास्तव में ज्ञानी तो वह है जो अपने अंतकरण में ईश्वर को पा लेता है।



प्रश्न 8.
हमारे संतों, भक्तों और महापुरुषों ने बार-बार चेताया है कि मनुष्यों में परस्पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होता, लेकिन आज भी हमारे समाज में भेदभाव दिखाई देता है-
(क) आपकी दृष्टि में इस कारण देश और समाज को क्या हानि हो रही है?
(ख) आपसी भेदभाव को मिटाने के लिए अपने सुझाव दीजिए।

उत्तर 8) क) मेरी दृष्टि में समाज में व्याप्त भेदभाव से देश और समाज को बहुत हानि हो रही है। भेदभाव की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण समाज में लोगों के बीच दूरियाँ बढ़ रही हैं, लोगों में परस्पर घृणा का भाव बढ़ रहा है। इससे देश व समाज के विकास की गति रूक रही है। किसी भी देश‐समाज का विकास तभी संभव है, जब उस समाज में समानता का भाव हो। समाज की एकता भी इस भेदभाव के कारण प्रभावित हो रही है। असंगठित समाज का सीधा असर देश के विकास पर पड़ता है।

ख) आपसी भेदभाव मिटाने के लिए भेदभाव के सारे स्वरूपों को पहचानना होगा और उनको एक‐एक करके खत्म करना होगा। अमीरी‐गरीबी का भेदभाव को खत्म करने के लिए सभी को रोजगार के समान अवसर उपलब्ध हों। बेरोजगारी ना हो तभी अमीरी‐गरीबी का भेदभाव कम होगा। ऊँच‐नीच के भेदभाव को मिटाने के लिए लोगों में जागरुकता लानी होगी कि सारे मनुष्य एक समान है, ईश्वर ने सबको एक जैसा बनाया है, ऐसा भाव लोगों के अंदर विकसित करना होगा। धर्म के भेदभाव को मिटाने के लिए समाज के लोगों को एक‐दूसरे के धर्मों का सम्मान करना होगा और पुरूष‐स्त्री के बीच के भेदभाव को मिटाने के लिए स्त्रियों को हर क्षेत्र में समान महत्व मिले, ऐसा प्रयास करना होगा।



पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 9.
भक्तिकाल में ललद्द्यद के अतिरिक्त तमिलनाडु की आंदाल, कर्नाटक की अक्क महादेवी और राजस्थान की मीरा जैसी भक्त कवयित्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए एवं उस समय की सामाजिक परिस्थितियों के बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 10.
ललयद कश्मीरी कवयित्री हैं। कश्मीर पर एक अनुच्छेद लिखिए।

उत्तर-
कश्मीर हमारे देश के उत्तरी भाग में स्थित है। यह पर्वतीय प्रदेश है। यहाँ का भू–भाग ऊँचा-नीचा है। कश्मीर के ऊँचे पहाड़ों पर सरदियों में बरफ़ पड़ती है। यह सुंदर प्रदेश हिमालय की गोद में बसा है। अपनी विशेष सुंदरता के कारण यह मुगल बादशाहों को विशेष प्रिय रहा है। मुगल सम्राज्ञी ने उसकी सुंदरता पर मुग्ध होकर कहा था, ‘यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है।’

कश्मीर में झेलम, सिंधु आदि नदियाँ बहती हैं जिससे यहाँ हरियाली रहती है। यहाँ के हरे-भरे वन, सेब के बाग, खूबसूरत घाटियाँ, विश्व प्रसिद्ध डल झील, इसमें तैरते खेत, शिकारे, हाउसबोट आदि सैलानियों के आकर्षण का केंद्र हैं। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता देखने के लिए देश से नहीं वरन विदेशी पर्यटक भी आते हैं। पर्यटन उद्योग राज्य की आमदनी में अपना विशेष योगदान देता है। वास्तव में कश्मीर जितना सुंदर है उतने ही सुंदर यहाँ के लोग भी हैं। ये मृदुभाषी हँसमुख और मिलनसार प्रकृति के हैं। कश्मीर वासी विशेष रूप से परिश्रमी होते हैं। वास्तव में कश्मीर धरती का स्वर्ग है।


Extra Questions

प्रश्न 1. 'ललद्यद ने संकीर्ण मतभेदों के घेरों को कभी स्वीकार नहीं किया'-इस कथन को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- ललद्यद की शैवधर्म में आस्था थी पर उसने संकीर्ण मतवादों के घेरों को कभी स्वीकार नहीं किया था। उसने जो कहा वह सार्वभौम महत्त्व रखता था। किसी धर्म या संप्रदाय विशेष को अन्य धर्मों या संप्रदायों से श्रेष्ठ मानने की भावना का उसने खुलकर विरोध किया। वह उदात्त विचारों वाली उदार संत थी। उसके अनुसार ब्रह्म को चाहे जिस नाम से पुकारो-वह ब्रह्म ही रहता है। सच्चा संत वही है जो प्रेम और सेवा भाव से सारी मानव जाति के कष्टों को दूर करे तथा ईश्वर को मतभेद से दूर होकर स्वीकार करे।


प्रश्न 2. ललद्यद के क्रांतिवादी व्यक्तित्व पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर- ललद्यद में विभिन्न धर्मों के विचारों को समन्वित करने की अद्भुत शक्ति थी। वह धार्मिक रूढ़ियों, अंधविश्वासों, रीति-रिवाजों पर कड़ा प्रहार करती थी। धर्म के नाम पर ठगने वाले लोग उसकी चोट से तिलमिला उठते थे। वह मानती थी कि धार्मिक बाह्याडंबरों का धर्म और ईश्वर से कोई संबंध नहीं है। तीर्थ यात्राओं और शरीर को कष्ट देकर की जाने वाली तपस्याओं से ईश्वर की प्राप्ति नहीं होती। बाहरी पूजा एक ढकोसला मात्र है। वह देवी- देवताओं के लिए पशु-बलि देना सहन नहीं करती थी।


प्रश्न 3. कवयित्री किस 'घर' में जाना चाहती है? उसके हृदय में बार-बार हूक क्यों पैदा हो रही है?
उत्तर- कवयित्री परमात्मा के पास जाना चाहती है। उसे लगता है कि यह संसार उसका असली घर नहीं है। उसका असली घर तो वह है जहाँ परमात्मा निवास करते हैं। इसीलिए उसके हृदय में बार-बार यहीं हूक पैदा होती है कि वह परमात्मा की शरण प्राप्त करे। इस जीवन को त्याग दे, पर ऐसा संभव नहीं हो रहा है। वह इसके लिए निरंतर प्रयास कर रही है। अपनी असफलता पर उसका हृदय विचलित हो रहा है।


प्रश्न 4. 'पानी टपके कच्चे सकोरे' से क्या आशय है?
उत्तर– पानी टपके कच्चे सकोरे से कवयित्री का आशय यह है कि मानवीय शरीर धीरे-धीरे कच्चे सकोरे की तरह कमज़ोर हो रहा है और एक दिन वह नष्ट हो जाएगा। जिस प्रकार कच्चे सकोरे से धीरे-धीरे पानी टपकने से वह नष्ट हो जाता है, उसी प्रकार उसका शरीर भी धीरे-धीरे अपनी निश्चित आयु को प्राप्त हो कमज़ोर हो रहा है। यह प्राकृतिक नियम है और प्राणी को यह पता भी नहीं चलता है कि उसकी आयु समाप्त हो जाती है।


प्रश्न 5. कवयित्री ने 'न खाकर बनेगा अहंकारी' कहकर किस तथ्य की ओर संकेत किया है?
उत्तर- 'न खाकर बनेगा अहंकारी' में कवयित्री ने इस बात की ओर संकेत किया है कि मानव परमात्मा को प्राप्त करने के लिए तरह-तरह के बाह्य आडंबर करता है। भूखे रह कर व्रत करता है परंतु उसे वह स्वयं को संयमी और शरीर पर नियंत्रण रखने वाला मान लेता है। इससे उसके मन में अहंकार उत्पन्न हो जाता है। वह स्वयं को योगी पुरुष मान लेता है।


प्रश्न 6. 'खा-खा कर' कुछ प्राप्ति क्यों नहीं हो पाती?
उत्तर- मनुष्य को लगातार खान का जीवन जितना अधिक भोग-विलास में डूबता जाता है, उतना ही भगवान से दूर हो जाता है। उसका मन ईश्वर की भक्ति में नहीं लगता है और ईश्वर की प्राप्ति के बिना इस दुनिया से पार हो संभव नहीं है। इसलिए खा-खाकर भी कुछ प्राप्त होने वाला नहीं है।


प्रश्न 7. कवयित्री क्या प्रेरणा देना चाहती है?
उत्तर- कवयित्री मनुष्य को यह प्रेरणा देना चाहती है कि बाहरी आडंबरों से कुछ भी संभव नहीं है। मानव को अपने जीवन में सहजता बनाए रखनी चाहिए। संयम का भाव श्रेष्ठ होता है। और इसी से वह परमात्मा को प्राप्त कर सकता है।


प्रश्न 8. 'गई न सीधी राह' से क्या तात्पर्य है?
उत्तर - 'गई न सीधी राह' से कवयित्री का तात्पर्य है कि परमात्मा ने उसे जब संसार में भेजा था तो वह सीधी राह पर चल रही थी परंतु संसार के मायात्मक बंधनों ने उसे अपने बस में कर लिया और वह चाहकर भी परमात्मा को प्राप्त करने के लिए भक्ति मार्ग पर नहीं बढ़ सकी। दुनियादारी में उलझकर सद्कर्म नहीं किया।


प्रश्न 9. मनुष्य मन ही मन भयभीत क्यों हो जाता है?
उत्तर- परमात्मा जब मनुष्य को धरती पर भेजता है, उसका मन साफ होता है उसे दुनियादारी से कोई मतलब नहीं होता है परंतु धीरे-धीरे वह संसार के मोह-माया के बंधनों में उलझ जाता है। वह सद्कर्मों से दूर हो जाने पर मन ही मन भयभीत होता है कि अब उसका समय पूरा होने वाला है, उसे परमात्मा के पास वापिस जाना है, परमात्मा जब उसके कर्मों का लेखा-जोखा देखेगा, वह क्या बताएगा। भव सागर से पार जाने के लिए मनुष्य के सद्कर्म ही उसके काम आते हैं। यही सोच मनुष्य को मन ही मन भयभीत करती रहती है।


प्रश्न 10. ईश्वर वास्तव में कहाँ है? उसकी पहचान कैसे हो सकती है?
उत्तर- ईश्वर वास्तव में संसार के कण-कण में समाया हुआ है। वह तो प्रत्येक मनुष्य के भीतर है इसलिए उसे कहीं बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता नहीं है। उसे तो अपने भीतर से ही पाने की कोशिश की जानी चाहिए। ईश्वर के सच्चे स्वरूप की पहचान अपनी आत्मा को पहचानने से संभव हो सकती है। आत्मज्ञान ही उसकी प्राप्ति का एकमात्र रास्ता है।


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